गुरु नानक देव जी ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में भाई लेहणा जी को चुना, जो बाद में गुरु अंगद देव जी (सिखों के दूसरे गुरु) बने।
गुरु अंगद देव जी को उत्तराधिकारी बनाने का कारण:
- अटूट भक्ति और सेवा: भाई लेहणा जी ने गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं को गहराई से अपनाया और पूरी निष्ठा से उनकी सेवा की।
- सिख सिद्धांतों का पालन: उन्होंने गुरु नानक के संदेशों को पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ अपनाया।
- परिक्षाओं में सफलता: गुरु नानक ने कई बार अपने शिष्यों की परीक्षा ली, जिनमें भाई लेहणा जी हमेशा खरे उतरे।
उत्तराधिकारी नियुक्ति प्रक्रिया:
- 1539 ईस्वी में गुरु नानक देव जी ने अपने शिष्यों और परिवारजनों के सामने भाई लेहणा जी को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया।
- उन्हें "गुरु अंगद" नाम दिया, जिसका अर्थ है "गुरु का अंग" यानी गुरु का अभिन्न अंग।
- इसके बाद, गुरु नानक देव जी ने करतारपुर में 22 सितंबर 1539 को ज्योति जोत (परमात्मा में विलीन) समा गए।
गुरु अंगद देव जी ने गुरु नानक की शिक्षाओं को आगे बढ़ाया और सिख धर्म के विस्तार में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
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