वक्रोक्ति अलंकार
वक्रोक्ति, जिसका अर्थ है 'टेढ़ा कथन', हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण अलंकार है। यह 'वक्र' और 'उक्ति' शब्दों का संयोजन है। इसका अर्थ है जब वक्ता की बात को श्रोता किसी अन्य अर्थ में ग्रहण करता है, तब उसे वक्रोक्ति अलंकार कहा जाता है।
केशवदास की परिभाषा
प्रसिद्ध काव्यकार केशवदास ने वक्रोक्ति को इस प्रकार परिभाषित किया है:
"केसव सुधी बात में बरनत टेढ़ो भाव।
वक्रोकति तासो कहै सही सबै कविराय।"
इसका अर्थ है कि जब किसी सीधे कथन में उलटे या टेढ़े भाव की व्यंजना होती है, तब वह वक्रोक्ति कहलाती है।
वक्रोक्ति के भेद
वक्रोक्ति के दो प्रमुख भेद हैं: श्लेष वक्रोक्ति और काकू वक्रोक्ति।
1. श्लेष वक्रोक्ति
जब वाक्य में श्लिष्ट शब्द का प्रयोग होता है और श्रोता उसे अन्य अर्थ में ग्रहण करता है, तब उसे श्लेष वक्रोक्ति कहा जाता है। उदाहरण के लिए:
"एक कबूतर देख हाथ में पूछा कहाँ अपर है,
उसने कहा अपर कैसा लो यह उड़ गया सपर है।"
इसमें 'अपर' शब्द के दो अर्थ निकलते हैं—राजा अपनी रानी से दूसरे कबूतर के विषय में पूछता है, जबकि रानी इसे अन्य अर्थ में ग्रहण कर अपने जवाब में उसे उड़ाकर उत्तर देती है।
2. काकू वक्रोक्ति
काकू वक्रोक्ति तब होती है जब वक्ता की बात को कंठ ध्वनि द्वारा श्रोता अन्य अर्थ में ग्रहण करता है। उदाहरण के लिए:
"मैं सुकुमारि नाथ बन जोगू।
तुमहिं जोग तप मोकहूं भोगू।"
यहाँ सीता जी कह रही हैं कि वे सुकुमारी बनकर घर में बैठेंगी, जबकि यह अन्य रूप में भी समझा जा सकता है कि नाथ वन में जाएंगे।
निष्कर्ष
वक्रोक्ति अलंकार न केवल भाषा की सुंदरता बढ़ाता है, बल्कि यह सुनने वाले की सोच और समझ को भी चुनौती देता है। इसे समझना और प्रयोग में लाना कवियों के लिए एक महत्वपूर्ण कौशल है। वक्रोक्ति के माध्यम से संप्रेषण की गहराई और अर्थ की विविधता को प्रदर्शित किया जा सकता है।
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