प्रश्न:- पंचकोश का सिद्धांत किस उपनिषद से लिया गया है ?
उत्तर:- पंचकोश का सिद्धांत तैत्तरीय उपनिषद से लिया गया है। योग धरना के अनुसार मनुष्य के शरीर को पांच भागों में विभाजित किया गया है जिन्हें पंचकोश कहते हैं। प्रत्येक कोश का एक दूसरे कोश से घनिष्ठ संबंध होता है और वह एक दूसरे को प्रभावित करती है और स्वयं भी प्रभावित होती है।
यह पांच कोश इस प्रकार से है-
1. अन्नमय कोश:- अन्न तथा भोजन से निर्मित कोश अन्नमय कोश होता है। यह पहला कोश है जहां पर आत्मा स्वयं को अभिव्यक्त करती है। शरीर से मतलब सिर्फ मनुष्य ही नहीं बल्कि वृक्ष लताओं तथा अन्य प्राणियों का भी शरीर।
2. प्राणमय कोश:- प्राणों से बने कोश को प्राणमय कोश कहते हैं। श्वास लेते समय हमारे अन्नमय कोश से जो स्पंदन बाहर की तरफ जाता है उससे हमारे चारों तरफ तरंगों का क्रम बन जाता है यही प्राणमय कोश होता है।
3. मनोमय कोश:- यह मन से बना कोश होता है। हमारी इंद्रियों के द्वारा जब कोई संदेश हमारे मस्तिष्क में प्रवेश करता है तो उसके अनुसार वहां पर एक सूचना एकत्रित हो जाती है। उसके बाद हमारी भावनाओं की तरह ही मस्तिष्क में रसायनों का स्राव होता है, जिससे हमारे अंदर विचार बनते हैं और जैसा हमारा विचार होता है वैसा ही हमारा मन स्पंदन करने लगता है। इस प्रकार प्राणमय कोष के बाहर एक आवरण बन जाता है यही मनोमय कोश होता है।
4. विज्ञानमय कोश:- विज्ञानमय कोश अंतर्ज्ञान या सहज ज्ञान से बना हुआ कोश होता है।
5. आनंदमय कोश:- आनंद की अनुभूति से बना हुआ कोश आनंदमय कोश होता है।
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